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।।श्री।।

श्री गुरूदेव दत्त प्रसन्न

श्री गणपतिची आरती

सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची।नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची।।
सर्वांगी सुंदर उटि शेंदुराची। कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची।।1।।
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती। दर्शनमात्रे मनकामना पुरती।।धृ।।
रत्नखचित फरा, तुज गौरीकुमरा। चंदनाची उटी कुंकुम केशरा
हिरे जड़ित मुकुट शोभतो बरा। रूणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया।।जय।।2।।
लंबोदर पीतांबर फणिवर बंधना। सरळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना
दास रामाचा वाट पाहे सदना। संकटी पावावे, निर्वाणी रक्षावे सुरवरवंदना।।3।।
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श्री दत्ताची आरती

त्रिगुणात्मक त्रैमूर्ति दत्त हा जाणा। त्रिगुणी अवतार त्रैलोक्य राणा
नेति नेति शब्द न ये अनुमाना। सुरवर मुनिवर योगी समाधि न ये ध्याना।।1।।
जयदेव जयदेव जय श्री गुरूदत्ता। आरती ओवाळीता हरली भवचिंता।धृ।
सबाह्याभ्यंतरी तूं एक दत्त। अभाग्यासी कैसी कळे ही मात
परा ही परतली तेथे कैचा हेत। जन्म मरणाचा पुरलासे अंत।।2।।
दत्त येउनिया उभा ठाकला। सद्भावे साष्टांगें प्रणिपात केला
प्रसन्न होऊनिया आशीर्वाद दिधला। जन्म मरणाचा फेरा वाचविला।।3।।
दत्त दत्त ऐसे लागले ध्यान। हारपले मन झाले उन्मन
मी-तूंपणाची झाली बोळवण। एका जनार्दनी श्रीदत्त ध्यान।।4।।
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आरती दत्तप्रभूंची

जय जय श्रीदत्तगुरू आरती तुला। ओवाळितो प्रेमभरे तारि तूं मला।।धृ।।
तव भजनी मग्न सदा तारि पामरा। दुष्टजना दंड करूनि रक्षि मज वरा।
पाप लया नेई जसे अग्नि कर्पुरा। हारि, वारी, तारी, जगभरणा।
या शरणा करि करूणा। तारि तूं मला।।1।।
बालकृष्ण कवि तुजला विनती ही करी। सद्गुरू तव दर्शन मज देई झडकरी
इच्छा मम हीच असे पूर्ण ती करी। द्यावे, पावे, यावे, करूनि त्वरा,
भक्तवर मुक्त करा। भो प्रभो मला।।2।।
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आरती सद्गुरूंची

जय जय सद्गुरू परमकृपाळा सच्चिदानंद स्वरूपा।
आशीर्वाद सदैव शिरी या अंतरी असो कृपा।
भक्तांचे कल्याण साधण्या श्रमली तव पाउले।
आरती करितो भावे तुझिया स्मरणीं मन रमले।।1।।
संकटकाळी धावुनि येसी प्रेमे आळविता।
ब्रीद आपुले हे जाणुनिया शरण तुला आता।
सुखशांतिचा प्रसाद द्यावा, चरणकमल नमिले।
आरती करितो भावे तुझिया स्मरणी मन रमले।।2।।
हृदयी सद्गुण, नयनी दर्शन, श्रवणी बोधामृत।
सत्संगति तव कृपे मिळावी होई मन शांत।
सर्व समर्पण सद्गुरूनाथा हेचि ध्येय उरले।
आरती करितो भावे तुझिया स्मरणी मन रमले।।।3।।
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जय जगदीश हरे-आरती

जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट, दासजनों के संकट क्षण में दूर करे।।
जो ध्यावे फल पावे दुःख विनशे मन का।
सुखसंपत्ति घर आवे कष्ट मिटे तन का।।1।।
माता-पिता तुम मेरे शरण गहंू में किसकी।
तुम बिन और न दूजा आस करू मैं किसकी।।2।।
तुम पूरण परमात्मा तुम अंर्तयामी।
पार ब्रह्म परमेश्वर तुम सबके स्वामी।।3।।
तुम करूणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं सेवक तुम स्वामी कृपा करो भर्ता।।4।।
तुम हो एक अगोचर सबके प्राणपति।
किस विधी मिलूं दयामय तुमको मैं कुमती।।5।।
दीनबंधु दुख हर्ता तुम रक्षक मेरे।
अपने हाथ उठाओ द्वार खडा तेरे।।6।।
विषय विकार मिटाओ पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढाओ संतन की सेवा।।7।।
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कर्पूरारति

कर्पूरगौरं करूणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं
सदावसंतं हृदायरविन्दे भवंभवानी सहितं नमामि।।
मंदारमाला कुलितालकायै कपालमालांकित शेखराय।
दिव्यांम्बरायैच दिगंबराय, नमः शिवायैति नमः शिवाय।।
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घालिन लोटांगण

घालिन लोटांगण वंदीन चरण डोळ्याने पाहिन रूप तुझे हे।
प्रेमे आलिंगीन आनंदे पूजिन भावे ओवाळीन म्हणे नामा।
त्वमेव माता पिता त्वमेव त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव।
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वाबुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात्।
करोमि यद्यद् सकलं परस्मै नारायणायैति समर्पयामि।
अच्युतं केशवं रामनारायणम् कृष्ण दामोदरं वासुदेवं हरिम्।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकी नायकं रामचंद्र भजे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
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काकड आरती

श्री गुरूदेव दत्तात्रेयांची नैमित्तिक प्रातः काकड आरती
पंचप्राण काकड आरती तत्त्वात्मक ज्योति। लावुनि तत्त्वात्मक ज्योतिद्य। ओवाळिला गुरूमूर्ति। ओवाळिला श्री त्रैमूर्ति परमात्मा प्रीती।।धृ.।।
ओवाळू आरती माझ्या सद्गुरूनाथा। स्वामी श्री गुरूनाथा। शरण मी आलो।
तुज पदी ठेविला माथा।।1।।
कृष्णा सुपंचगंगा अनादि संगमी, नरहरि अनादि संगमी।
राहे गुरूवर तरूतळी। तो हा माझा कुळस्वामी।।2।।
द्वारी चौघड़ा वाजे वाजंत्री कर्णे वाजंत्री वाजती।
नाना घोषे गर्जत भक्त स्वानंदे स्तविती।।3।।
इन्द्रादि सुरवर पन्नग दर्शनास येती।
नारद मुनिवर किन्नर तुंबर सुस्वरे आळविती।।4।।
पाहूनि सिंहासनी आदि मूर्ति सावळी। चिन्मय मूर्ति सावळी।
श्री गुरू भक्त तन्मय। श्री गुरूदत्त निर्भय। श्री पदी ओवाळू आरती।।5।।
ओवाळू आरती माझ्या सद्गुरूनाथा……..परमात्मा प्रीति।।
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काकड आरती

भक्तिचिये पोटी बोध काकडा ज्योति, बोध काकडा ज्योति।
पंचप्राण जीवे भावे ओवाळू आरती।।धृ.।।
ओवाळू काकड़ा माझ्या पंढरीनाथा, माझ्या द्वारकानाथा।
दोन्ही कर जोडूनि, दोन्ही कर जोडूनि चरणी ठेविला माथा।।1।।
काय महिमा वर्णु आतां सांगणे किती, आता सांगणे किती।
कोटि ब्रम्हहत्त्या, कोटि ब्रम्हहत्त्या मुख पाहतां जाती।।2।।
राई रखमाबाई उभ्या दोघी दो बाही, उभ्या दोघी दो बाही।
मयुर पिच्छ चामरे, मयुर पिच्छ चामरे ढाळतो ठाईच्या ठाई।।3।।
विटे सहित पाय जीवे भावे ओवाळू, जीवे भावे ओवाळू।
कोटि रवि शशी, कोटि रवि शशी, दिव्य उगवले हेळू।।4।।
तुका म्हणे दीप घेऊनि उन्मनित शोभा, घेऊनि उन्मनित शोभा।।
विटेवरी उभा विटेवरी उभा, दिसे लावण्य गाभा।।5।।
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काकड आरती

परमात्मया श्री रघुपति, राजा राम श्री रघुपति।
जीवी जीवा प्रकाशल्या, जीवी जीवा प्रकाशल्या, तैशा निजात्म ज्योति।।
त्रिगुण काकडा द्वैत घृते तिंबीला, द्वैत घृते तिंबीला।
उजळल्या निजात्म ज्योति, उजळल्या निजात्म ज्योति
तेणे जळोनी गेल्या।।1।।
काकड़ काजळी ना मैस।
नाही जळमळ डळमळ, नाही जळमळ डळमळ
अवनी ना अंबर, अवनी ना अंबर,
तया प्रकाश निघोट निश्चयळ।।2।।
उदयो ना अस्तु तया बोध प्रातःकाळी, तया बोध प्रातःकाळी।
रामी रामदासी, रामी रामदासी
सहजा सहज ओवाळू।। काकड आरती।।3।।
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आरती

ओवाळा ओवाळा श्रीगुरू रामदास राणा, जयगुरू रामदास राणा।
पंच ही प्राणांचा दीपक लाविला जाणा।।धृ.।।
तिमिराज्ञाने योगे उजळल्या वाती, योगे उजळल्या वाती।
ज्ञानदीप प्रगटला, ज्ञानदीप प्रगटला, तेणे प्रकाशल्या ज्योति।।1।।
सज्जनगड वासी माझे रामदास, माझे रामदास।
पंच ही प्राणांचा पंच ही प्राणांचा, दीपक लाविला जाणा।।2।।
निर्गुण निरंजन ज्योति श्री गुरू रामदास, जय गुरू रामदास
दर्शन मंगलप्रद, दर्शन मंगलप्रद, कल्याणांचा कळस।।3।।
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काकड आरती

करू सकल मिळुनी काकड़ आरती, लावुनि प्राणांच्या ज्योति।
देवा भक्ती करू सकळ ही मिळुनी काकड आरती।।धृ.।।
उटवुनी जीवे भावे देवा करूण स्वराने प्रभु आळवावा।
सुंदरमूर्ति आठवुनी चित्ती।। करू सकळ ही मिळुनी ।।1।।
हृदयपटावरी देवा यावे, शुद्ध जळ मुख प्रक्षाळावे।
आशा रक्षा फिरवा दत्ता वरती। करू सकळ ही ……।।2।।
ज्ञानामृत हे दूध असावे, काम क्रोध हे जाळुनी सारे।
दूध तापवू त्यांच्या वरती।। करू सकळ ही ……।।3।।
करू मंथन अज्ञान सारे, षडगुण नवनीत काढुनी बरवे।
भक्ती शर्करा घालुनी त्यातची। करू सकळ ही ……।।4।।
शांती तुळशी वाहू देवा, आनंदे बुक्का उधळावा।
लक्ष्य लावुनी मुख चन्द्रावरती। करू सकळ ही ……।।5।।
प्रेम रसाचा भरूनी पेला, देवा नैवेद्यास्तव आणिला
करी प्राशन तुजला ही विनंती। करू सकळ ही ……।।6।।
तन मन माझे अर्पित देवा, तव पद कमळी ठाव द्यावा।
पार्वती तनयानत तव चरणावरती।। करू सकळ ही ……।।7।।
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काकड आरती

काकडा झाला आता मुख प्रक्षाळा, मधुनवनीत शर्करा, मधुनवनीत शर्करा।
घेऊनि आली जनकांची बाळा, आली संतांची बाळा।। काकडा……।।धृ.।।
उठले श्रीरंग बैसले रत्नजडित चौरंगी, मुखमार्जन करूनी टिळक रेखीला चंदन सर्वांगी।। तुळशी माळा गळा मुनी मानस योगी दयाळा।। काकडा।।1।।
रत्नताटी बहुपक्वान्ने दही, दूध, घृत, मधुशर्करा तांबुल घेऊनि सवे चालीलो
वारीताती चामरा। त्याही वेळी वेद गरजती साही अठरा दयाळा, साही अठरा दयाळा।।2।।
रत्नजडित मंडपी वैसली सभा घनदाट, आनंदे जयजयकार करोनी पदी ठेविले ललाट। शुकसनकादिक नारद मुनि आले वशिष्ठ दयाळा आले वशिष्ठ काकडा।।3।।
उद्धव अक्रूर नारद आले जोडूनिया कर। याचक होऊनि दान मागिती द्या राजेश्वर।। सखया दासभक्ति झाली हेचि निरंतर दयाळा हेचि निरंतर।। काकडा झाला।।4।।
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साखर साय अर्पण

द्या माझ्या दत्ताला साखर साय, द्या माझ्या कृष्णाला साखर साय!
विनविते अनसुया माय, विनविते यशोदा माय।। द्या माझ्या ……।।धृ.।।
कामधेनु दोहुनि दूध काढिले, षड्रिपु जाळोनी वर तापविले।
प्रेमाची आली वर साय।। द्या माझ्या……. ।।1।।
नवरत्न वाटी घेवोनी करी, गुरूबोध शर्करा घालुनी करी।
गोडी ती वर्णु मी काय।। द्या माझ्या……. ।।2।।
धन्य जगी या अनसूया माता, धन्य जगी या यशोदा माता।
गोरस पाजूनी खेळवी दत्ता ऋषि अत्रि कौतुक पहाय।। द्या माझ्या……. ।।3।।
सायीची गोडी गुरू एक जाणे। पुनरपि संसारी येणे न जाणे।
मनु वंदीत सद्गुरू पाय ।। द्या माझ्या……. ।।4।।
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श्री दत्ताला स्नान

दत्ताला स्नान घालीते प्रेमाने अनसूया। जमले ते देवभक्त कौतुक हे पहावया।।धृ.।।
गंगेचे शुद्ध पाणी घेऊनिया साजणी।
नवरत्न कुटुनी केली निर्मळ उटणी।
स्नेहाने तेल माखी अंग मृदु ह्नावया।। दत्ताला स्नान ……………….।।1।।
सावरोनी नित्य बांधी भार जटा मस्तकी।
भस्माची उटी शोभे सर्वांगी नेटकी।
लल्लाटी कुंकु माथा लावू टिळा पाहू या।। दत्ताला स्नान ……………….।।2।।
अवधूत स्नान नेत्री आज आम्ही पाहिले।
चित्ताच्या शेवंतीचे हार गळा घातले।
नैवेद्य पंच प्राणा मनु अर्पी खावया।। दत्ताला स्नान ……………….।।3।।
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